श्री दत्तात्रेय प्रागट्य रहस्य

अलग अलग पुराणों में “दत्त प्रागट्य रहस्य” की अद्भुत कथा है।

पृथ्वीलोक (मृत्युलोक) की मातृ शक्ति का गुणगान बढ़ाने हेतु देवर्षि नारद ब्रह्मलोक गए है। ब्रह्मलोक में ब्रह्माणी के पास जाकर वंदन करते हुए माता अनसूया के सतित्व की महिमा का गुणगान कर बोल रहे है कि, “पृथ्वीलोक में महासती माता अनसूया की शिष्या शाण्डिली के पति कौशिक को, मांडव्य ऋषि ने श्राप दिया है कि सूर्योदय होते ही उनका देहांत होगा । परंतु सति शाण्डिली ने निरंतर सात दिन सूर्योदय होने ही नही दिया। अंत मे देवो ने माता अनसूया को प्रार्थना की है कि – कृपया आपकी शिष्या शाण्डिली से सूर्य को मुक्त कराईए। माता के आदेश पर सूर्यदेव को फिर से गति प्राप्त हुई और कौशिक का देहांत हुआ । माता अनसूया ने मृत कौशिक को फिरसे जीवन प्रदान किया । यह घटना की वजह से पूरे पृथ्वीलोक में माता अनसूया की जयजयकार हो गई है।” यही बात उन्होंने विष्णुलोक में लक्ष्मीजी को और कैलाश में माता पार्वतीजी को भी सुनाई। माता अनसूया के बहुत बखान किए है ।

जिज्ञासा के कारण तीनो देवियों ने अपने पतिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बिनती करके आग्रह किया है की “आप पृथ्वीलोक में जाईए और माता अनसूया की परीक्षा लीजिए”। जिनका कोई भी तर्क रद न हो वह नारद है। सृष्टि के संचालन में सदा से नारदजी की विशिष्ट भूमिका रही है। तीनो देवो ने महर्षि अत्रि और महासती अनसूया के आश्रम में संन्यासी के रूप में आगमन किया है, और माता को याचना की है कि “आप दिगंबर स्वरूप में हमे भिक्षा प्रदान करें तो ही हम आपसे भिक्षा स्वीकार करेंगे।”

साल १९९९ में, में जब लंदन गया था तब किसी विदेशी ने मुझे यह प्रश्न पूछा कि, ” हिन्दू धर्म के महान देवता ने सती नारी के पास ऐसी अनुचित मांग क्यों की ? ” मैंने तब उत्तर दिया की – शास्त्रो में समाधि की भाषा होती है जिनका रहस्य गूढ़ होता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो देव यह जानते थे कि माता अनसूया ब्रह्मवादिनी है, और व्यापक स्वरूप धारण कर सकती है। यही व्यापकता की कसौटी करने के लिए “दिगंबर” हो के भिक्षा दीजिए ऐसा मांगा है। अमरकोश मैं लिखा है “दिक् एव अंबर इति दिगंबर” – दिशा ही जिनका वस्त्र है वही दिगंबर है । अनसूया माताने वह अवस्था में जाने के लिए अपने पतिदेव का स्मरण करके हाथमें जल ले के तीनों देवों के ऊपर अंजलि डाली है, खुद विराट स्वरूप हो गई और तीनो देवों को हिरण्यगर्भ में ले गई। अर्थात् तीनो देव सत्व, रजस, तमस तीनो गुण से परे हो गए और समत्व की स्थिति में पहुँच गए है। माता अनसूया भी अपने पांच तत्वों से बने शरीर को विसर्जित करके, तीनों गुणों से पर हो गई अब देवता भी नन्हे बालक की भांति निर्दोष हो गए। जिनको माता स्तनपान कराती है और जैसे बच्चे को मां अपनी गोद में खिलाती हैं वैसे ही भिक्षा देती है।

कुछ समय के बाद देवर्षि नारद अपने पति वियोग में व्याकुल और चिंतामग्न तीनो देवियों के पास जाते है और पूछते है कि “आपके पतिदेव किधर है ?” तब तीनो देवी बताती है “हम पूरे ब्रह्मांड में देख आए पर कहीं पर वो नज़र नही आए। तब नारदजी बताते हैं कि ” माता अनसूया ने तीनों देवों को अपनी योगशक्ति द्वारा अपने मूल स्वरूप में – सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्वरूप में रख दिया है। इस वज़ह से कोई उन्हें देख नही सकता।” यह सुनकर तीनों देवी भयभीत हो गई है और माता अनसूया के आश्रम में आई है और माफि मांगी है और अपने पति को पुनः अपने स्वरूप में लौटाने की प्रार्थना करती है। अनसूया माता के सतित्व के प्रभाव से और उनके संकल्प शक्ति से तीनों देव बंधन मुक्त होते है और उनके सामने मूलरूप से प्रगट होते है। तीनो देव के अंश चंद्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा के रूपमे प्रगट हुए है । क्योकि अत्रि को दिया है ( दत्त + आत्रेय) इसलिए “दत्तात्रेय” नाम से प्रचलित है।

।।हरि ॐ तत्सत् जय गुरु दत्त।।
प.पूज्य पुनिताचारीजी महाराज गिरनार